मी रकसम - फिल्म का रिविऊ 2020

कलाकार: नसीरुद्दीन शाहदानिश हुसैनअदिति सुवेदी ,राकेश चतुर्वेदी ओमश्रद्धा कौलसुदीपा सिंहफारुक जफर व अन्य

अवधि: एक घंटा 35 मिनट

ओटीटी प्लेटफॉर्म: जी 5

निर्माता और निर्देशक: बाबा आजमी
प्रस्तुतकर्ता: शबाना आज़मी

भारतीय सभ्यता व संस्कृति में गंगा जमुनी तहजीब की बातें बहुत की जाती है. मगर धीरे-धीरे हम सभी इस बात को भूलते जा रहे हैं.  अब बाबा आजमी और शबाना आज़मी अपने पिता कैफी आजमी को ट्रिब्यूट देने के लिए  एक फिल्म ” मी रक्सम” लेकर आए हैं. ओटीटी प्लेटफार्म “जी 5” पर प्रसारित हो रही इस फिल्म में  एक बार फिर से भारत की “गंगा जमुनी संस्कृति” को बढ़ावा देने के साथ-साथ इस बात को रेखांकित किया गया है कि कला का कोई धर्म नहीं होता.

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कहानी : यह कहानी है उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के तहत आने वाले गांव मिजवान में रहने वाले एक मुस्लिम परिवार की. सलीम(दानिश हुसैन) दर्जी का काम करते हैं , जो अपनी पत्नी सकीना और 15 वर्ष की बेटी मरियम(अदिति सुवेदी) के साथ रहते हैं. अचानक सकीना की मौत हो जाती है, इससे मरियम अंदर से काफी टूट जाती है. इस दुख की घड़ी में शोक व्यक्त करने के लिए मरियम की खाला जेहरा(श्रद्धा कौल), उनके पति, उनकी बेटी के साथ साथ मरियम की नानी(फारुक जफर) भी आती है और शोक प्रकट कर सलीम को नसीहत देकर चले जाते है. इलाके के सम्मानित व्यक्ति हासिम शेख(नसीरुद्दीन शाह) भी शोक व्यक्त करने आते हैं और सलीम से कहते हैं कि अब उन्हें मरियम का खास ख्याल रखना होगा.

सलीम महसूस करते हैं कि अपनी मां की मौत से दुखी उनकी बेटी मरियम को नृत्य करने से आनंद मिलता है और वह अक्सर स्कूल जाते समय रास्ते में “उमा भारतनाट्यम डांस अकादमी” के पास रूक कर नृत्य देखती है. अपनी बेटी के अरमानों को पूरा करने के लिए सलीम  निर्णय लेते हुए “उमा भरतनाट्यम डांस एकेडमी” में मरियम को भी नृत्य की ट्रेनिंग दिलाना शुरू करते हैं.  इस बात से हाशिम शाह, मौलवी सभी नाराज होते हैं. सभी चाहते हैं कि सलीम अपनी बेटी मरियम को भरतनाट्यम डांस सिखाना बंद करे. लेकिन सलीम के लिए अपनी बेटी मरियम की खुशी प्राथमिकता है. इससे हाशिम शेख नाराज हो जाते हैं और सलीम को मस्जिद में भी जाने से रोक देते हैं. गांव के सभी लोग सलीम से कपड़े सिलवाना बंद कर देते हैं. सलीम चारों तरफ से मुसीबत से घिर जाते हैं. पर वह अपनी बेटी  को नृत्य सिखाना बंद नहीं करते हैं. भरतनाट्यम सिखाने वाली शिक्षक उमा (श्रद्धा कौल), मरियम की नृत्य प्रतिभा से काफी खुश हैं.मगर मरियम की खाला और उनकी नानी भी नाराज हैं .मगर मरियम को अपनी खाला की बेटी गुलशन का साथ मिलता है. ऑटो रिक्शा चालक अशफाक(कौस्तुभ शुक्ला) नई सोच वाला लड़का है. वह सलीम के परिवार का साथ देता है, जिसकी वजह से कई रिक्शा चालक अब सलीम के पास अपने कपड़े सिलवाने लगते हैं. सभी मरियम के नृत्य कौशल से प्रभावित है. मगर “उमा भरतनाट्यम डांस अकादमी” को सहयोग देने वाले नेता जयप्रकाश(राकेश चतुर्वेदी ओम) को यह बात पसंद नहीं है कि एक मुस्लिम लड़की भरतनाट्यम सीखे. जबकि जयप्रकाश की बेटी अंजलि, मरियम का साथ देती है और वह खुद भी सूफी संगीत सुनती रहती है. तमाम विरोध के बावजूद मरियम अपनी मिट्टी को जारी रखती है और मुस्लिम समुदाय के साथ साथ हिंदू नेता जयप्रकाश के विरोध के बावजूद वह एक प्रतियोगिता में विजयश्री हासिल करती है.

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कहानी और निर्देशन : मुद्दों पर आधारित फिल्मों का निर्माण करना बहुत कठिन होता है .मगर भाई-बहन की जोड़ी यानी कि बाबा आज़मी और शबाना आज़मी एक बेहतरीन शिक्षाप्रद और प्रेरक कहानी वाली फिल्म “मी रक्सम” लेकर आई है. यह दिल को छू लेने वाली सुंदर कहानी है. इसमें दर्जी का काम करने वाले एक पिता अपनी बेटी को उड़ान/ पंख देने के लिए कितनी मुश्किलो का सामना करता है,इसका बेहतरीन चित्रण है.एक साधारण और सुंदर कहानी के माध्यम से निदेशक लोगों के दिलों तक यह बात पहुंचाने में सफल रहते हैं कि कला की रूह उसकी आजादी है. या फिर जहां एक तरफ भारत की गंगा जमुनी तहजीब की याद दिलाती है वही धर्म और वर्ग भेद में बच्चे समाज का वितरण करती है इतना ही नहीं और चाय हिंदू धर्म की हो या मुस्लिम उसे तमाम तरह के सामाजिक बंधुओं में जकड़ कर रखा जाता है इसका भी चित्रण है तो वही या फिर दकियानूसी प्रथाओं पर चलने वाले समाज का आधुनिक तू ही किसका विरोध कर रही है उसका भी चित्रण है या फिर एक बेहतरीन संदेश देते हुए मानवता और इंसानियत की बात करती हैं इस फिल्म का सबसे बड़ा संदेश यही है कि कला का कोई धर्म नहीं होता है.लेकिन इसमें कुछ कमियां भी हैं. मशीन पूरी फिल्में भारतनाट्यम सीखते हुए किस तरह की मेहनत मरियम करती है, इसका कहीं कोई चित्रण नहीं है, जबकि इस पर रोशनी डालना जरूरी था.फिल्म के कुछ संवाद जो दिल को छूने के साथ-साथ बहुत बड़ी बात का जाते हैं. मतलब जब हाशिम शेख धमकी देते हुए सलीम से कहते हैं-“कतरा कतरा से मिलकर रहता है तभी दरिया बनता है.”इसके अलावा वह भी कहते हैं-“तवायफ बनाने का इरादा है?” यह संवाद बहुत कुछ कह जाते हैं.इसके अलावा एक संवाद है “इस्लाम इतना कमजोर नहीं कि एक बच्ची के नृत्य सीखने से उसकी तोहीन हो जाए.”


अभिनय: यह सुंदर फिल्म दानिश हुसैन और अदिति सुवैदी के उत्कृष्ट अभिनय के चलते ही सुंदर बन पाई है. यह दोनों कलाकार पूरी फिल्म को अपने कंधे पर लेकर चलते हैं. अभिनय की जितनी तारीफ की जाए कम है. अदिति सुवेदी ने सिर्फ सुंदर अभिनय नहीं किया है ,बल्कि उनका नृत्य कौशल कमाल का है. नसीरुद्दीन शाह के अपने भक्तों पर सच में लगाया ही नहीं जा सकता .अफसोस इस फिल्म में मेहमान कलाकार के तौर पर उनका किरदार बहुत छोटा है, पर अहम है. इसी के साथ श्रद्धा कौल ,कौस्तुभ शुक्ला, फारुक जफर, सुदीपा सिंह और राकेश चतुर्वेदी ओम ने भी अच्छा अभिनय किया है.


रेटिंग: स्टार

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